कृष्ण जन्माष्टमी पर पहली बार व्रत रखने वाले जाने कैसे रखें व्रत

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 श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और दिनभर भजन-कीर्तन करते हैं। लेकिन पहली बार व्रत रखने जा रहे हैं तो जान लें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत के नियम …श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत की तैयारी एक दिन पहले से शुरू हो जाती है। यदि पहली बार आप व्रत रखने जा रहे हैं तो पहले ही जान लें कैसे करें तैयारी …पुरोहितों के अनुसार एकादशी उपवास के दौरान पालन किए जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन करना चाहिए। जानें जन्माष्टमी व्रत के नियम

जन्माष्टमी व्रत के दौरान किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।

जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है, जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है।

जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिए। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के बाद किया जा सकता है।

यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिए।

कई बार अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अंत समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो संपूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। लेकिन जो श्रद्धालु लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के बाद व्रत को तोड़ सकते हैं।

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गृहस्थ और स्मार्त को कब मनाना चाहिए जन्माष्टमी

अधिकांशतया श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। ऐसे समय पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त गृहस्थ संप्रदाय के लोगों के लिए और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए होती है। वैष्णव संप्रदाय के लोग व्रत के लिए अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिंदी कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है।

 

वहीं स्मार्त लोग निशिता काल (जो कि हिंदू अर्धरात्रि का समय है) को प्राथमिकता देते हैं। जिस दिन अष्टमी तिथि निशिता काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को प्राथमिकता दी जाती है। इन नियमों में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिए कुछ और नियम जोड़े जाते हैं। इस तरह जन्माष्टमी के दिन का अंतिम निर्धारण निशिता काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन के आधार पर किया जाता है। स्मार्त नियमों के अनुसार हिंदू कैलेंडर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है।

जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती और श्री जयंती आदि नाम से पुकारते हैं

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