निर्जला एकादशी की कथा

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निर्जला एकादशी की कथा (निर्जला एकादशी व्रत कथा हिंदी में):

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इसका संबंध महाभारत के महाबली पांडव भीम से है। यह एकादशी वर्ष की सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन बिना जल के उपवास (निर्जल व्रत) रखने का विशेष महत्व है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

🌼 कथा का सारांश:

महाभारत काल में, पांडवों में केवल भीमसेन एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। कारण यह था कि वे बहुत अधिक भोजन करते थे और उपवास करना उनके लिए अत्यंत कठिन था।

भीमसेन ने एक दिन महर्षि व्यास से कहा:

> “मुनिवर! मेरी माता कुंती, भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी व्रत रखते हैं। वे मुझे भी ऐसा करने के लिए कहते हैं, परंतु मैं भूखा नहीं रह सकता। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताइए जिससे मुझे भी व्रत का फल मिल जाए लेकिन उपवास न करना पड़े।”

 

तब व्यास मुनि ने कहा:

> “हे भीम! यदि तुम वर्ष में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और नियम से रख लो, तो तुम्हें पूरे वर्ष की 24 एकादशियों का फल प्राप्त होगा। इस दिन तुम जल तक ग्रहण मत करना। केवल भगवान विष्णु का ध्यान करना, कथा सुनना और रात भर जागरण करना।”

 

 

भीमसेन ने वचन दिया और कठिन तपस्या के साथ निर्जला एकादशी का व्रत रखा। उन्होंने दिनभर अन्न, जल सबका त्याग किया और रातभर जागरण करके भगवान विष्णु की भक्ति की।

📜 व्रत का महत्व:

जो व्यक्ति पूरे वर्ष एकादशी नहीं रख पाता, वह यदि केवल निर्जला एकादशी का व्रत करता है, तो उसे सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।

इस व्रत से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यह व्रत विशेषकर दान-पुण्य के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है — जल, अन्न, वस्त्र, छाता, पंखा आदि का दान करने से विशेष फल मिलता है।

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