भीष्म पितामह की पांडवों को सीख:

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पांडवों के साथ श्रीकृष्ण थे फिर भी उनके जीवन में दुख आते रहें, दुखों से डरे नहीं, बल्कि उनका सामना करें
जीवन परिवर्तनशील है और सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसके जीवन में कठिनाइयां नहीं आती हैं। मुश्किल समय में भी सकारात्मक रहना चाहिए, खुद पर और भगवान पर भरोसा रखना चाहिए, तब परिस्थितियों से लड़ने का साहस बना रहता है। ये बात महाभारत के भीष्म पितामह और पांडवों से जुड़े प्रसंग से समझ सकते हैं…
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे, इच्छामृत्यु के वरदान की वजह से वे जीवित थे। एक दिन जब श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर भीष्म के पास पहुंचे, तब सभी ने देखा कि पितामह की आंखों में आंसू हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ये देखकर पांडवों आश्चर्य हुआ। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे माधव! ये वही भीष्म हैं जो ब्रह्मचारी हैं, जिनका जीवन तपस्या से परिपूर्ण है, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। फिर ये अंतिम समय में रो क्यों रहे हैं?

श्रीकृष्ण बोले कि इस प्रश्न का उत्तर पितामह स्वयं तुम्हें देंगे।

ये बातें सुनकर भीष्म ने कहा कि मेरी आंखें मृत्यु के भय से नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण की लीला देखकर भीग गई हैं। मैं यह सोचकर विचलित हो गया हूं कि जिन पांडवों के रक्षक स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं, उनके जीवन में भी एक के बाद एक कई विपत्तियां आती गईं। भगवान का साथ होने का अर्थ ये नहीं है कि जीवन में दुख नहीं आएंगे, बल्कि इसका अर्थ ये है कि भगवान का साथ हो तो दुखों से लड़ने की शक्ति मिलती रहती है। हम साहस के साथ परेशानियों का सामना कर पाते हैं।

भीष्म पितामह की सीख

दुख जीवन का हिस्सा हैं, इन्हें सकारात्मकता के साथ स्वीकारें – आस्था या भक्ति का मतलब ये नहीं है कि जीवन में संकट नहीं आएंगे। बल्कि भक्ति हमें उन्हें सहने और पार करने की शक्ति देती है। इसलिए दुखों के लिए भी सकारात्मक सोच रखें और उनका सामना करें, समस्याओं से भागे नहीं।
दूसरों को बदलने की अपेक्षा खुद को मजबूत बनाएं – जब हम भगवान से ये अपेक्षा करते हैं कि हालात और दूसरे लोग हमारे अनुकूल हो जाए तो इस सोच की वजह से हम कमजोर हो जाते हैं। लेकिन जब हम खुद को मजबूत करते हैं, तब हम हर परेशानी का सामना साहस के साथ कर पाते हैं।
भक्ति करते हुए समस्याओं का सामना करें – सच्ची भक्ति साहस देती है। भीष्म जानते थे कि श्रीकृष्ण का साथ होने पर भी पांडवों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने डटकर उनका सामना किया, क्योंकि उनके पास भक्ति और श्रीकृष्ण का साथ था। हमें भी भक्ति करते हुए समस्याओं का सामना करना चाहिए।

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